Wife Maintenance Rights – पिछले कुछ वर्षों में तलाक और मेंटेनेंस से जुड़े मामलों में काफी तेजी से बदलाव आए हैं, लेकिन 2025 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है, वो वाकई में ऐतिहासिक है। कोर्ट ने साफ कर दिया कि अब पत्नी हमेशा पति की कमाई पर मेंटेनेंस का हक नहीं जता सकती, खासकर जब पहले से ही एकमुश्त समझौता हो चुका हो।
कोर्ट पहले कैसे तय करता था मेंटेनेंस?
आमतौर पर जब किसी पत्नी ने मेंटेनेंस की याचिका लगाई, तो कोर्ट सबसे पहले पति की आमदनी, उसकी संपत्ति, जीवनशैली और सामाजिक स्थिति को देखकर मेंटेनेंस तय करता था। पत्नी की आय, संपत्ति या आत्मनिर्भरता को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता था। मतलब साफ था – पति कमाता है, तो पत्नी को मेंटेनेंस मिलेगा।
लेकिन 2025 में क्या बदला?
2025 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक केस में बिल्कुल अलग नजरिया अपनाया। इस केस में पति-पत्नी का रिश्ता सिर्फ 2-3 साल ही चला था। तलाक के बाद कोर्ट ने पहले पत्नी और बच्ची दोनों को मेंटेनेंस दिया था। लेकिन बाद में पति-पत्नी के बीच कोर्ट में समझौता हुआ और पति ने एकमुश्त राशि देकर मेंटेनेंस से मुक्ति पा ली।
पत्नी ने फिर की कोर्ट में वापसी
पत्नी ने बाद में हाई कोर्ट में यह कहकर याचिका दायर कर दी कि समझौते में उसे कम पैसा मिला और वह अभी भी मेंटेनेंस की हकदार है क्योंकि उसकी स्थायी आमदनी नहीं है। लेकिन इस बार कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि:
- पति की आय ही एकमात्र पैमाना नहीं है।
- पत्नी और पति के बीच हुए समझौते को भी गंभीरता से देखा जाएगा।
- पति की नई जिम्मेदारियों (दो विशेष देखभाल वाले बच्चे, पुनर्विवाह, विधवा बहन) को भी ध्यान में रखा जाएगा।
- शादी कितने समय चली, पत्नी ने कितने दिन पति के साथ बिताए – ये भी महत्वपूर्ण तथ्य हैं।
कोर्ट की अहम टिप्पणी
कोर्ट ने कहा कि अब समय आ गया है जब केवल पति की जेब देखकर फैसला नहीं लिया जाना चाहिए। कोर्ट को यह देखना चाहिए कि:
- क्या पति ने पहले से मेंटेनेंस या एलुमनी दी है?
- क्या पत्नी ने उस समझौते पर सहमति दी थी?
- क्या पति की नई ज़िंदगी में ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं?
- क्या शादी लंबे समय तक चली या नहीं?
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि पत्नी को दोबारा मेंटेनेंस की मांग करने का कोई हक नहीं बनता।
नया कानून भी लागू हुआ है
अब CrPC की धारा 125 को हटाकर नया कानून – Indian Civil Security Code में सेक्शन 144 जोड़ा गया है, जिसके तहत पत्नी मेंटेनेंस मांग सकती है। लेकिन यह मामला उस नियम के भी दायरे में नहीं आया क्योंकि एक बार समझौता हो चुका था।
इस फैसले के मायने
इस केस का फैसला लाखों ऐसे पतियों के लिए राहत भरा है जो शादी टूटने के बाद भी सालों तक मेंटेनेंस देने को मजबूर होते हैं, भले ही पत्नी ने दोबारा शादी नहीं की हो या आमदनी छिपाई हो।
क्या यह महिलाओं के खिलाफ है?
बिलकुल नहीं। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई पत्नी असहाय है, आय नहीं है और पहले कोई समझौता नहीं हुआ – तो वो अब भी मेंटेनेंस की हकदार है। लेकिन अगर दोनों पक्षों ने समझौता किया है, एकमुश्त पैसा लिया है और फिर भी बार-बार कोर्ट में याचिकाएं डाली जा रही हैं – तो यह न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग है। यह फैसला तलाक और मेंटेनेंस से जुड़े कानूनों की व्याख्या में बड़ा बदलाव लाता है। अब सिर्फ पति की सैलरी नहीं, पूरी पारिवारिक और वैवाहिक पृष्ठभूमि देखी जाएगी। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि समझौता होने के बाद मेंटेनेंस के लिए दोबारा कोर्ट जाना गलत है।
डिस्क्लेमर:
यह लेख केवल सूचना के उद्देश्य से है। किसी भी कानूनी निर्णय या कदम से पहले अपने वकील या विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें। यह लेख किसी पक्ष की आलोचना या समर्थन में नहीं है, सिर्फ एक न्यायिक फैसले की जानकारी देता है।