Father Property Rights 2025 – अगर आप एक बेटी हैं और यह सोचती हैं कि पिता की संपत्ति पर आपका बराबरी का अधिकार है, तो ज़रा ठहरिए। हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक ऐसा फैसला दिया है जिसने कई लोगों को चौंका दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर पिता की मौत साल 1956 से पहले हो गई थी, तो उनकी बेटियों को उनकी संपत्ति में कोई कानूनी हक नहीं मिलेगा।
क्या है मामला?
ये केस महाराष्ट्र के यशवंतराव नाम के व्यक्ति से जुड़ा है, जिनकी मृत्यु 1952 में हो गई थी। उनके परिवार में दो पत्नियां थीं – पहली पत्नी लक्ष्मीबाई जिनकी मृत्यु 1930 में ही हो गई थी और उनसे एक बेटी राधाबाई थी। इसके बाद यशवंतराव ने भीकूबाई से दूसरी शादी की, जिनसे उन्हें एक और बेटी चंपूबाई हुई।
यशवंतराव की मौत के बाद जब संपत्ति को लेकर मामला उठा, तो पहली पत्नी की बेटी राधाबाई ने कोर्ट में याचिका दायर की। उन्होंने कहा कि उन्हें भी पिता की संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलना चाहिए।
ट्रायल कोर्ट ने क्या कहा?
जब यह मामला सबसे पहले ट्रायल कोर्ट में गया, तो वहां राधाबाई की दलील मान्य नहीं हुई। अदालत ने साफ कहा कि यशवंतराव की मृत्यु 1956 में लागू हुए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम से पहले हुई थी, इसलिए संपत्ति का बंटवारा उस समय के कानूनों के अनुसार होगा। उस समय की व्यवस्था में बेटियों को पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं दिया गया था।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
राधाबाई ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में 1987 में अपील की थी। अब जाकर यह केस सुना गया और हाईकोर्ट की दो जजों की पीठ – जस्टिस एएस चंदुरकर और जस्टिस जितेंद्र जैन – ने फैसला सुनाया।
कोर्ट ने साफ किया कि चूंकि यशवंतराव की मौत 1956 से पहले हुई थी, इसलिए 1956 में बना हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू नहीं होगा। उस समय के पुराने कानून के अनुसार बेटियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया जाता था।
1937 का कानून क्या कहता था?
1956 से पहले जो कानून था, उसे कहते हैं हिंदू महिला संपत्ति अधिकार अधिनियम, 1937। इस कानून के मुताबिक, विधवा पत्नी को पति की संपत्ति में सीमित अधिकार मिलते थे – यानी वो पूरी ज़िंदगी उस संपत्ति में रह सकती थी लेकिन उसे बेच या किसी और को ट्रांसफर नहीं कर सकती थी। बेटियों को उस कानून में कोई हक नहीं दिया गया था।
जब 1956 में नया कानून आया, तब बेटियों और विधवाओं को संपत्ति में बराबरी का हक मिला। और 2005 में इसमें और सुधार करके बेटियों को बेटों के बराबर अधिकार दिए गए।
कोर्ट के अंदर भी हुआ मतभेद
इस केस में दिलचस्प बात ये थी कि दोनों जजों की राय इस मुद्दे पर एक जैसी नहीं थी कि बेटी को 1956 से पहले के मामले में अधिकार मिलना चाहिए या नहीं। इसलिए इस मामले को एक बड़ी खंडपीठ के पास भेजा गया था, जहां इस पर विस्तार से विचार किया गया।
लेकिन अंततः यह फैसला लिया गया कि पुराना कानून ही मान्य होगा और चूंकि उस वक्त बेटियों को संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता था, इसलिए अब भी उन्हें हक नहीं मिल सकता।
क्या इस फैसले का असर हर किसी पर पड़ेगा?
नहीं, यह फैसला सिर्फ उन्हीं मामलों पर लागू होता है जहां पिता की मृत्यु 1956 से पहले हुई थी और उनकी संपत्ति का बंटवारा अब तक नहीं हुआ है या उस पर कोई विवाद है।
अगर किसी के पिता की मृत्यु 1956 के बाद हुई है, तो बेटियों को पूरी तरह से बराबरी का हक मिलेगा। खासतौर पर 2005 के बाद तो बेटियों को बहुत मजबूत कानूनी अधिकार मिल चुके हैं।
क्या करें अगर आप ऐसी स्थिति में हैं?
अगर आप भी एक बेटी हैं और आपको लगता है कि आपके पिता की संपत्ति में आपका हक बनता है, तो सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि आपके पिता की मृत्यु कब हुई थी। अगर 1956 के बाद, तो आप पूरी तरह से कानूनी रूप से संपत्ति में बराबरी की हकदार हैं।
लेकिन अगर मृत्यु 1956 से पहले हुई थी, और उस वक्त संपत्ति का बंटवारा नहीं हुआ, तो हो सकता है आपको कानून के अनुसार उस संपत्ति में हिस्सा न मिले।
यह मामला हमें यही सिखाता है कि कानून समय के साथ बदलता है और हर फैसले की जड़ें उसके समय के नियमों में होती हैं। बेटियों को अधिकार देने के लिए सरकार ने समय-समय पर कानूनों में बदलाव किया है, लेकिन पुराने मामलों में पुराने नियम ही लागू होते हैं।
तो अगर आप संपत्ति के हक को लेकर कोई कदम उठाना चाहती हैं, तो पहले ये ज़रूर समझें कि मामला किस समय का है और उस वक्त का कानून क्या कहता था।
अपनी कानूनी स्थिति को सही से समझने के लिए किसी अनुभवी वकील की सलाह जरूर लें। इससे न केवल आपका समय और पैसा बचेगा, बल्कि आप किसी अनावश्यक झंझट से भी बच सकेंगी।