Land Purchase Rules – भारत में हर किसी का सपना होता है कि उसका खुद का एक घर हो, एक जमीन का टुकड़ा हो, जहां वो अपनी मर्जी से कुछ भी बना सके। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के कुछ ऐसे राज्य भी हैं, जहां आप चाहें करोड़ों-अरबों खर्च कर दो, फिर भी जमीन नहीं खरीद सकते। इन राज्यों में कुछ खास संवैधानिक प्रावधान और स्थानीय परंपराएं हैं, जिनके चलते बाहरी लोगों को जमीन खरीदने की इजाजत नहीं दी जाती। चलिए जानते हैं ऐसे ही 5 राज्यों के बारे में, जहां जमीन खरीदना हर किसी के बस की बात नहीं।
1. हिमाचल प्रदेश – धारा 118 का खेल
हिमाचल प्रदेश एक खूबसूरत पहाड़ी राज्य है, जहां हर साल लाखों लोग घूमने आते हैं। बर्फ से ढंके पहाड़, हरे-भरे जंगल और शांत वातावरण हर किसी को अपनी तरफ खींचता है। लेकिन ज़रा ठहरिए! अगर आप हिमाचल में एक फार्महाउस बनाने का सपना देख रहे हैं, तो पहले वहां के कानून समझ लीजिए।
यहां पर 1972 के भूमि सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत, कोई भी बाहरी व्यक्ति यानी जो हिमाचल का मूल निवासी नहीं है, वह खेती की जमीन नहीं खरीद सकता। अगर कोई वहां जमीन लेना भी चाहता है, तो उसे राज्य सरकार से विशेष अनुमति लेनी होती है। ये कानून इसलिए बनाए गए हैं ताकि राज्य की कृषि भूमि सिर्फ स्थानीय लोगों के पास रहे और बाहर से आने वाले लोग ज़मीन खरीदकर उसकी कीमतें न बढ़ाएं।
2. नागालैंड – आर्टिकल 371A की ताकत
नागालैंड में ज़मीन खरीदने का मामला और भी खास है। जब यह राज्य 1963 में बना था, तब इसे संविधान के अनुच्छेद 371A के तहत विशेष अधिकार दिए गए। इस अनुच्छेद के अनुसार, राज्य की ज़मीन, संस्कृति, परंपराएं और कानून, केंद्र के सामान्य कानूनों से अलग रहेंगे।
इसका मतलब ये है कि नागालैंड में बाहर के लोग न तो जमीन खरीद सकते हैं और न ही उस पर कब्जा कर सकते हैं। यहां तक कि दूसरे भारतीय राज्यों के लोग भी बिना परमिशन के यहां नहीं रह सकते। इससे नागालैंड की जनजातीय पहचान और सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखा गया है।
3. सिक्किम – अनुच्छेद 371F का असर
सिक्किम, जो कभी एक स्वतंत्र रियासत हुआ करता था, 1975 में भारत में शामिल हुआ। इसे भी विशेष संवैधानिक दर्जा मिला और संविधान में अनुच्छेद 371F जोड़ा गया। इस अनुच्छेद के तहत, सिक्किम में कोई बाहरी व्यक्ति ज़मीन नहीं खरीद सकता, चाहे वो भारतीय नागरिक ही क्यों न हो।
यहां का ज़मीन कानून काफी सख्त है। कोई भी बाहरी व्यक्ति सिक्किम में ज़मीन खरीदने का सपना देखे, तो उसे पहले राज्य सरकार की मंजूरी लेनी होती है और आमतौर पर ये अनुमति बहुत मुश्किल से मिलती है। यह व्यवस्था स्थानीय लोगों की पहचान और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए है।
4. अरुणाचल प्रदेश – बिना अनुमति एक इंच जमीन नहीं
अरुणाचल प्रदेश भी पूर्वोत्तर भारत का एक बेहद सुंदर और संवेदनशील राज्य है। यहां पर जनजातीय समुदायों की बड़ी संख्या रहती है और उनकी संस्कृति को बनाए रखने के लिए खास भूमि कानून लागू हैं।
यहां पर कोई भी बाहरी व्यक्ति सरकार की अनुमति के बिना ज़मीन नहीं खरीद सकता। खेती की ज़मीन पर तो पूरी तरह से प्रतिबंध है। यहां तक कि ट्रांसफर या लीज़ पर देने के लिए भी राज्य सरकार की मंजूरी जरूरी होती है। इस कानून का मकसद स्थानीय लोगों की भूमि पर बाहरी कब्जे को रोकना है।
5. मिजोरम, मेघालय और मणिपुर – एक जैसी ही स्थिति
इन तीनों पूर्वोत्तर राज्यों में भी ज़मीन खरीदने को लेकर जनजातीय संरक्षण कानून लागू हैं। यहां न सिर्फ बाहरी राज्य के लोग, बल्कि कभी-कभी एक राज्य के निवासी दूसरे राज्य में भी ज़मीन नहीं खरीद सकते।
इन राज्यों में ज़मीन खरीदने के लिए संबंधित जनजातीय परिषदों, गांव परिषदों और राज्य सरकार की अनुमति लेनी पड़ती है। यह सब स्थानीय आदिवासी लोगों की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए किया गया है।
आखिर क्यों बनाए गए ये नियम?
इन राज्यों में ज़मीन खरीदने पर पाबंदी का सबसे बड़ा कारण स्थानीय लोगों की पहचान, संस्कृति और आजीविका को सुरक्षित रखना है। अगर बाहर के लोग भारी संख्या में ज़मीन खरीदने लगें, तो वहां की जमीनें महंगी हो जाएंगी और स्थानीय लोग अपने ही राज्य में ज़मीन खरीदने से वंचित हो सकते हैं।
साथ ही इन राज्यों की भौगोलिक और सामाजिक स्थितियां भी बाकी भारत से अलग हैं। इन इलाकों में जनजातीय संस्कृति, पारंपरिक जीवनशैली और संसाधनों की सीमित उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए ऐसे विशेष कानून बनाए गए हैं।
क्या इन नियमों में कभी बदलाव हो सकता है?
कई बार इस बात की चर्चा होती है कि क्या इन भूमि कानूनों को बदला जाए, ताकि इन राज्यों में बाहरी निवेश बढ़े और विकास की गति तेज हो। लेकिन फिलहाल स्थानीय सरकारें और लोग अपनी परंपरा और अधिकारों की सुरक्षा के लिए इन नियमों को बनाए रखना ही चाहते हैं।
तो अगर आप हिमाचल, सिक्किम या पूर्वोत्तर के किसी राज्य में ज़मीन लेने का मन बना रहे हैं, तो पहले वहां के कानूनों की अच्छे से जानकारी ले लें। क्योंकि ये वो राज्य हैं जहां सिर्फ पैसे से कुछ नहीं होता, बल्कि स्थानीय संस्कृति और संवैधानिक व्यवस्था को समझना जरूरी होता है।