New Property Rights – परिवार की संपत्ति यानी प्रॉपर्टी को लेकर अक्सर विवाद होते रहते हैं। खासकर जब वह संपत्ति संयुक्त परिवार की हो, तो कई लोगों का उस पर हक होता है। लेकिन सवाल ये भी उठता है कि आखिर परिवार का कौन सा सदस्य बिना किसी की अनुमति लिए वह पूरी प्रॉपर्टी बेच सकता है? क्या सच में कोई ऐसा होता है जिसे पूरा अधिकार मिल जाता है? हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर एक अहम फैसला सुनाया है जो इस सवाल का जवाब देता है।
परिवार की प्रॉपर्टी का मालिक कौन?
हमारे यहाँ कई परिवार संयुक्त परिवार के रूप में रहते हैं, जहां जमीन, मकान या दूसरी संपत्ति सभी सदस्यों की संयुक्त मिल्कियत होती है। हालांकि हर सदस्य का हिस्सा होता है, लेकिन फैसले लेने का अधिकार हर किसी के पास नहीं होता। ये बात अक्सर विवाद की जड़ बन जाती है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि परिवार का मुखिया यानी कर्ता (Family Karta) बिना किसी की अनुमति के पूरे परिवार की प्रॉपर्टी बेच सकता है। इसका मतलब ये हुआ कि अगर परिवार में एक कर्ता मौजूद है, तो वह स्वतंत्र रूप से प्रॉपर्टी को बेचने का अधिकार रखता है। इसे रोकना या किसी और की अनुमति लेना जरूरी नहीं होता।
कर्ता कौन होता है?
परिवार का मुखिया या कर्ता वह सदस्य होता है जो परिवार का सबसे बड़ा उम्र वाला पुरुष होता है। हिंदू संयुक्त परिवार की परंपरा में कर्ता का दर्जा जन्म से मिलता है। परिवार के कर्ता को विशेष अधिकार मिलते हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण होता है परिवार की प्रॉपर्टी के बारे में निर्णय लेना।
यदि कर्ता अपनी जगह किसी को नामित करता है, तो वह नामित सदस्य कर्ता के सारे अधिकारों को संभाल सकता है। यह नामांकन या तो कर्ता के जीवित रहते किया जा सकता है या वसीयत के जरिये भी कर्ता अपने अधिकार किसी और को दे सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना है?
हाल ही में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया, जिसमें ये साफ कहा गया कि परिवार के कर्ता को बिना किसी की अनुमति के प्रॉपर्टी बेचने का अधिकार होता है।
इस मामले में शिकायतकर्ता ने अपने पिता पर आरोप लगाया था कि उन्होंने परिवार की संयुक्त संपत्ति को बिना परिवार के बाकी सदस्यों की सहमति के गिरवी रख दिया है। लेकिन कोर्ट ने माना कि कर्ता के पास ऐसा अधिकार होता है। इसलिए इस मामले में कोई गैर कानूनी काम नहीं हुआ।
समान उत्तराधिकारी क्या कर सकते हैं?
समान उत्तराधिकारी वे लोग होते हैं जो परिवार की प्रॉपर्टी में हिस्सा रखते हैं, जैसे परिवार के पुरुष सदस्य। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि वे तभी प्रॉपर्टी पर दावा कर सकते हैं या कोई कदम उठा सकते हैं जब कोई गैर कानूनी काम हो। अगर कर्ता ने सही तरीके से फैसले लिए हैं, तो समान उत्तराधिकारियों का उस फैसले पर आपत्ति करना सही नहीं होगा।
यह फैसला बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे कई परिवारों के बीच प्रॉपर्टी के मामलों में स्पष्टता आएगी। कई बार छोटे-मोटे विवाद की वजह से परिवार बिखर जाते हैं, लेकिन यह फैसला ऐसे मामलों को रोकने में मदद करेगा।
कर्ता के अधिकार और जिम्मेदारियां
कर्त्ता को न केवल प्रॉपर्टी बेचने का अधिकार मिलता है, बल्कि वह परिवार की संपत्ति की देखरेख और प्रबंधन का जिम्मेदार भी होता है। उसे परिवार के हित में निर्णय लेना होता है। यदि वह अनुचित निर्णय करता है या परिवार को नुकसान पहुंचाता है, तो अन्य सदस्य अदालत का सहारा ले सकते हैं।
लेकिन जब तक कर्ता सही ढंग से काम कर रहा है, तब तक वह परिवार की प्रॉपर्टी को बेचने, गिरवी रखने या किसी तरह के फैसले लेने का पूर्ण अधिकार रखता है। इसलिए परिवार के सदस्य को कर्ता के फैसलों का सम्मान करना चाहिए।
प्रॉपर्टी बेचने से पहले ध्यान रखने वाली बातें
हालांकि कर्ता के पास अधिकार है, लेकिन प्रॉपर्टी बेचते वक्त कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है:
- संपत्ति का सही मूल्यांकन: प्रॉपर्टी को उचित बाजार मूल्य पर ही बेचना चाहिए ताकि परिवार को नुकसान न हो।
- सभी कागजात सही रखें: विक्रय के कागजात, रजिस्ट्रेशन और अन्य जरूरी दस्तावेज सही और पूरी तरह से तैयार हों।
- पारिवारिक सदस्यों को सूचित करें: भले ही कानूनी जरूरत न हो, पर पारिवारिक सदस्यों को सूचित करना अच्छा माना जाता है ताकि विवाद की संभावना कम हो।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संयुक्त परिवार की प्रॉपर्टी से जुड़े विवादों को सुलझाने में मददगार साबित होगा। परिवार का मुखिया यानी कर्ता बिना किसी से अनुमति लिए संपत्ति बेच सकता है, लेकिन यह अधिकार जिम्मेदारी के साथ आता है। परिवार के अन्य सदस्य तभी अपना हक़ मांग सकते हैं जब कर्ता द्वारा कोई गैर कानूनी काम किया गया हो।
तो अगर आपके परिवार में भी प्रॉपर्टी के फैसले को लेकर कोई उलझन है, तो यह फैसला आपके लिए मददगार साबित हो सकता है। साथ ही, यह भी याद रखें कि किसी भी संपत्ति के मामले में हमेशा अच्छे कानूनी सलाहकार की मदद लेना बेहतर रहता है ताकि भविष्य में किसी भी तरह के विवाद से बचा जा सके।