Petrol-Diesel Price Update – हर महीने की तरह इस बार भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों में हलचल देखने को मिली है। ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने एक बार फिर से फ्यूल के बेस प्राइस में बदलाव किया है, जिससे कई हिस्सों में पेट्रोल और डीजल के रेट में इजाफा या गिरावट देखी जा रही है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि आम लोग ताजा बदलावों की जानकारी रखें, क्योंकि ये सीधे तौर पर उनके रोजमर्रा के खर्च पर असर डालते हैं।
पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बदलाव क्यों होता है?
कई लोगों को यह बात समझ नहीं आती कि आखिर पेट्रोल और डीजल की कीमतें रोज़-रोज क्यों बदलती हैं। इसका सीधा जवाब है – बेस प्राइस, टैक्स और इंटरनेशनल मार्केट। ऑयल मार्केटिंग कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से कच्चा तेल खरीदती हैं और उसका रिफाइंड वर्जन यानी पेट्रोल और डीजल तैयार करती हैं। इस पूरी प्रक्रिया में लॉजिस्टिक खर्च, सप्लाई चेन लागत और अन्य फैक्टर जुड़ते हैं। इसके बाद केंद्र और राज्य सरकारें अलग-अलग टैक्स लगाकर फाइनल रेट तय करती हैं, जो आम जनता तक पहुंचता है।
मामूली बढ़ोतरी या कटौती, लेकिन असर बड़ा
भले ही पेट्रोल में 40 पैसे और डीजल में 20-60 पैसे की ही बढ़ोतरी या गिरावट हो, लेकिन इसका असर बहुत बड़ा होता है। एक-दो दिन में शायद फर्क महसूस न हो, लेकिन एक महीने के भीतर ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट, रोजमर्रा के सामान की कीमतें और घरेलू बजट सब बदल जाते हैं। खासकर उन लोगों के लिए जो रोज अपने वाहन से ऑफिस या काम पर जाते हैं, उनके लिए यह सीधा खर्च का मामला है।
हर राज्य में क्यों अलग-अलग रेट?
आपने देखा होगा कि भारत के हर राज्य में पेट्रोल और डीजल की कीमतें अलग होती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हर राज्य सरकार अपने हिसाब से VAT यानी वैल्यू एडेड टैक्स लगाती है। उदाहरण के तौर पर एक राज्य में VAT कम हो सकता है, तो दूसरे राज्य में ज्यादा। यही वजह है कि पड़ोसी राज्यों में भी फ्यूल की कीमतों में काफी अंतर देखने को मिलता है।
कच्चे तेल की कीमतें स्थिर लेकिन रेट में बदलाव
हालांकि पिछले कुछ समय से ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतें काफी हद तक स्थिर हैं। Brent Crude और WTI Crude दोनों ही कुछ प्रतिशत की मामूली बढ़त या गिरावट के साथ ट्रेड कर रहे हैं। इसके बावजूद भारत में रेट्स बदल रहे हैं क्योंकि यहां पर रेट का निर्धारण सिर्फ ग्लोबल प्राइस पर नहीं, बल्कि घरेलू फैक्टर्स पर भी होता है। जैसे कि टैक्स स्ट्रक्चर, इन्वेंट्री लागत, ट्रांसपोर्टेशन खर्च आदि।
आम आदमी की जेब पर असर
महंगाई के इस दौर में पेट्रोल-डीजल की कीमतें किसी भी समय आम आदमी की जेब का संतुलन बिगाड़ सकती हैं। जब फ्यूल महंगा होता है, तो सब्जी, किराना, दूध, दवाइयां, और यहां तक कि ऑनलाइन डिलीवरी तक की कीमतें बढ़ जाती हैं। यहीं से महंगाई का चक्र शुरू होता है, जो धीरे-धीरे हर चीज़ को महंगा बना देता है। इसलिए फ्यूल रेट का स्टेबल रहना जनता के हित में है।
सरकारी हस्तक्षेप से मिल सकती है राहत
सरकार समय-समय पर एक्साइज ड्यूटी और टैक्स घटाकर राहत देती रही है। कई बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चा तेल सस्ता होने के बावजूद फ्यूल की कीमतें स्थिर रखी जाती हैं ताकि जनता को राहत मिल सके। लेकिन जब टैक्स नहीं घटता और कच्चा तेल महंगा होता है, तब कंपनियों को मजबूरन रेट बढ़ाने पड़ते हैं।
आगे क्या हो सकता है?
अभी के लिए रेट में बदलाव मामूली है, लेकिन फ्यूचर में अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति और डॉलर की मजबूती पर सबकुछ निर्भर करेगा। यदि कच्चा तेल महंगा होता है, तो भारत में भी पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ सकती हैं। वहीं अगर सरकार टैक्स में राहत देती है, तो थोड़ी राहत की उम्मीद की जा सकती है।
रेट चेक करने का आसान तरीका
अगर आप जानना चाहते हैं कि आपके एरिया में आज का ताजा रेट क्या है, तो आप सरकारी ऑयल कंपनियों की वेबसाइट या SMS सेवा का उपयोग कर सकते हैं। साथ ही पेट्रोल पंप की मोबाइल ऐप से भी रेट चेक किया जा सकता है।
पेट्रोल और डीजल की कीमतों में हलचल भले ही रोज की बात हो गई है, लेकिन यह मामूली बदलाव भी आम आदमी की ज़िंदगी में बड़ा फर्क ला सकता है। चाहे कीमतें बढ़ें या घटें, इसके असर से कोई नहीं बच सकता। ऐसे में जरूरी है कि हम समय-समय पर रेट चेक करते रहें, बजट प्लान करते रहें और किसी भी संभावित महंगाई के लिए तैयार रहें।