क्या नाना की जायदाद में है नाती-पोते का हक? जानिए कोर्ट का साफ कानून – Property Rules

By Prerna Gupta

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Property Rules – हर किसी का सपना होता है कि एक दिन वो अपने नाम की प्रॉपर्टी का मालिक बने। लेकिन बदलते जमाने और बढ़ती कीमतों के बीच ये सपना दिन-ब-दिन मुश्किल होता जा रहा है। खासकर मिडिल क्लास परिवारों के लिए घर खरीदना किसी जंग जीतने से कम नहीं है। अब सवाल आता है कि अगर किसी के नाना या दादा की प्रॉपर्टी है, तो क्या उस पर नाती-पोतों का हक बनता है? और दूसरी ओर, अगर खुद से प्रॉपर्टी खरीदनी हो तो ऐसा कौन सा तरीका है जिससे आप धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए अपने सपनों के घर तक पहुंच सकते हैं?

इस लेख में हम दोनों ही पहलुओं को कवर करेंगे – पहला कि क्या नाना की प्रॉपर्टी पर नाती-पोतों का कानूनी हक होता है, और दूसरा कि कैसे ‘प्रॉपर्टी लैडरिंग’ नाम की एक समझदारी भरी रणनीति अपनाकर आप छोटे निवेश से बड़ा फायदा उठा सकते हैं।

क्या नाना की संपत्ति पर नाती-पोतों का हक बनता है?

कानून के हिसाब से नाना की संपत्ति उनकी स्वअर्जित (Self-Acquired) संपत्ति है तो वे अपनी मर्जी से किसी को भी दे सकते हैं – बेटी को, दामाद को, किसी संस्था को या फिर किसी नाती-पोते को भी नहीं। यानी अगर नाना ने वसीयत नहीं बनाई है और संपत्ति उनकी खुद की कमाई से खरीदी गई है, तो उनके बच्चों को (बेटा-बेटी) उसमें बराबर का हिस्सा मिलेगा।

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लेकिन अगर ये पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) है, यानी चार पीढ़ियों से चली आ रही है और नाना ने उसे खुद नहीं खरीदा है, तो उस पर उनकी बेटी और बेटी के बच्चे यानी नाती-पोते भी हक जता सकते हैं। हालांकि, ये मामला थोड़ा जटिल हो जाता है और इसमें कोर्ट का सहारा लेना पड़ सकता है।

साफ कहें तो:

  • Self-acquired Property: नाती-पोतों का सीधा हक नहीं बनता जब तक नाना खुद से नाम ना लिखें।
  • Ancestral Property: हक बन सकता है, लेकिन कानूनी प्रक्रिया से गुजरना होगा।

अब आते हैं असली सवाल पर – जब खुद से घर लेना हो, तो कैसे?

बाजार में बढ़ती प्रॉपर्टी की कीमतों और बैंक लोन की शर्तों को देखते हुए, ‘प्रॉपर्टी लैडरिंग’ एक ऐसी रणनीति है जो मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास परिवारों के लिए बहुत ही कारगर साबित हो सकती है।

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प्रॉपर्टी लैडरिंग क्या है?

सीधे शब्दों में कहें तो, यह एक ऐसी प्लानिंग है जिसमें आप छोटे शहर या उभरते क्षेत्र में एक सस्ती प्रॉपर्टी खरीदते हैं, कुछ साल बाद जब उसकी कीमत बढ़ती है, तो उसे बेचकर उस पैसे से किसी और बड़ी प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट करते हैं। यही क्रम धीरे-धीरे आपको आपके ‘ड्रीम होम’ तक पहुंचा सकता है।

कैसे करें शुरुआत?

लोकेशन का चुनाव सबसे जरूरी है

टियर-2 या टियर-3 शहरों में जहां मेट्रो, इंडस्ट्रियल पार्क, स्कूल या कोई सरकारी प्रोजेक्ट आ रहा हो, वहां प्रॉपर्टी लें। ये जगहें आने वाले समय में बूम करेंगी।

कम कीमत वाली प्रॉपर्टी से शुरुआत करें

पहली इन्वेस्टमेंट 10-20 लाख की हो सकती है। इससे आपका फाइनेंशियल रिस्क भी कम होगा और प्रॉपर्टी मैनेज करना भी आसान होगा।

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3–5 साल रुकें और फिर प्रॉपर्टी बेचें

जब प्रॉपर्टी की कीमत 30-40% या उससे ज्यादा बढ़ जाए, तो उसे बेच दें।

मुनाफे को फिर से इन्वेस्ट करें

अब उसी पैसे को बड़ी प्रॉपर्टी में लगाएं – जैसे मेट्रो सिटी के बाहरी इलाके में फ्लैट या प्लॉट खरीदना।

उदाहरण से समझें

मान लीजिए आपने भोपाल में 18 लाख की एक प्लॉट ली। चार साल में उसका दाम बढ़कर 30 लाख हो गया। अब आप उस प्लॉट को बेचकर मुंबई के पास किसी डेवलपिंग एरिया में 1 BHK का फ्लैट बुक कर सकते हैं। इस तरह आप धीरे-धीरे अपनी प्रॉपर्टी वैल्यू बढ़ाते जाते हैं।

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टैक्स बचत भी होती है

भारतीय आयकर अधिनियम की धारा 54 के तहत अगर आपने एक रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी बेची है और उस रकम को दो साल के भीतर नई रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट किया है, तो लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स से छूट मिल सकती है।

किन बातों का रखें ध्यान?

  1. प्रॉपर्टी के डॉक्युमेंट्स की जांच करें – जमीन या फ्लैट खरीदते समय रजिस्ट्री, मालिकाना हक, एनओसी आदि पूरी तरह जांच लें।
  2. बाजार ट्रेंड पर नजर रखें – कब प्रॉपर्टी बेचनी है, ये फैसला जल्दबाजी में ना लें। मार्केट की चाल समझें।
  3. फाइनेंशियल प्लानिंग करें – लोन लेते वक्त अपनी EMI क्षमता का आकलन पहले ही कर लें। अचानक खर्च से बचने के लिए एक आपातकालीन फंड भी रखें।
  4. एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें – रियल एस्टेट एजेंट, वकील और टैक्स एक्सपर्ट से राय लेकर ही अगला कदम उठाएं।

चाहे नाना की संपत्ति का मामला हो या खुद से घर खरीदने का सपना, दोनों ही मामलों में सही जानकारी और योजना बनाकर चलना जरूरी है। अगर नाना की संपत्ति पर दावा करना है तो कानून को समझना जरूरी है, और अगर अपने दम पर प्रॉपर्टी खरीदनी है, तो ‘प्रॉपर्टी लैडरिंग’ जैसी स्मार्ट रणनीति को अपनाना फायदेमंद हो सकता है।

ध्यान रहे – प्रॉपर्टी एक दीर्घकालिक इन्वेस्टमेंट है। इसमें धैर्य, जानकारी और सही समय पर लिए गए फैसलों की बहुत अहमियत होती है।

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