Tenant Rights – आजकल किसी अच्छे किराए के मकान में रहना किसी टास्क से कम नहीं है। खासकर मेट्रो शहरों में तो जैसे-जैसे किराएदारों की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे मकान मालिकों की मनमानी भी बढ़ती जा रही है। मकान मिल जाना ही काफी नहीं होता, असली परेशानी तो तब शुरू होती है जब कुछ ही महीनों में मकान मालिक किराया बढ़ाने की बात करने लगता है। अब सवाल ये उठता है कि क्या वो ऐसा कर सकता है? और अगर हां, तो साल में कितना बढ़ा सकता है? इन सारे सवालों के जवाब जानना हर किराएदार के लिए जरूरी है।
रेंट एग्रीमेंट का रोल और कानूनी असर
रेंट एग्रीमेंट एक कागज का टुकड़ा जरूर दिखता है, लेकिन इसका कानूनी असर बहुत बड़ा होता है। ये दस्तावेज किराएदार और मकान मालिक दोनों के लिए सुरक्षा कवच की तरह काम करता है। रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 की धारा 17 इस एग्रीमेंट को लीगल स्टेटस देती है। यानी अगर कोई विवाद होता है, तो कोर्ट में रेंट एग्रीमेंट को पेश करके बहुत कुछ क्लियर किया जा सकता है। इसलिए मकान लेने से पहले किराएदार को ये पक्का कर लेना चाहिए कि रेंट एग्रीमेंट बना है या नहीं।
क्यों होता है रेंट एग्रीमेंट 11 महीने का ही?
अक्सर आपने सुना होगा कि रेंट एग्रीमेंट 11 महीने का होता है। इसके पीछे बहुत सिंपल वजह है। 12 महीने या उससे ज्यादा का एग्रीमेंट रजिस्ट्रेशन के दायरे में आ जाता है, जिसके लिए स्टांप ड्यूटी ज्यादा लगती है और सब-रजिस्ट्रार ऑफिस के चक्कर लगाने पड़ते हैं। वहीं 11 महीने का एग्रीमेंट बिना ज्यादा कानूनी झंझट के तैयार हो जाता है, जिससे मकान मालिक और किराएदार दोनों को सुविधा रहती है। और यही वजह है कि भारत में 11 महीने वाला रेंट एग्रीमेंट एक तरह से नॉर्म बन चुका है।
किराएदार के राइट्स – सिर्फ छत ही नहीं, सुविधाएं भी मिलनी चाहिए
एक किराएदार के तौर पर आपके पास सिर्फ रहने का हक नहीं है, बल्कि आपको जरूरी सुविधाएं भी मिलनी चाहिए – जैसे कि पानी, बिजली और सीवरेज की सुविधा। मकान मालिक इनसे इनकार नहीं कर सकता, हां, अगर रेंट एग्रीमेंट में लिखा हो कि बिजली का बिल अलग से देना होगा, तो वो ठीक है। इसलिए जरूरी है कि घर लेते वक्त ही आप पूछ लें कि कौन-सी सुविधा में क्या शामिल है, ताकि बाद में कोई झगड़ा न हो।
तो अब असली सवाल – साल में कितना बढ़ सकता है किराया?
देखिए, इसका कोई एक जवाब नहीं है क्योंकि हर राज्य का अपना रेंट कंट्रोल एक्ट होता है। जैसे महाराष्ट्र की बात करें, तो वहां रेंट कंट्रोल एक्ट 1999 के अनुसार मकान मालिक हर साल अधिकतम 4% तक किराया बढ़ा सकता है। लेकिन अगर उसने कोई नया फर्नीचर लगाया हो, AC या गीजर लगाया हो, तो वो 25% तक किराया बढ़ा सकता है। बाकी राज्यों में नियम थोड़े अलग हो सकते हैं, इसलिए अपने राज्य के रूल्स जरूर चेक करें।
रेंट एग्रीमेंट का फायदा सिर्फ किराएदार को नहीं, मालिक को भी होता है
रेंट एग्रीमेंट दोनों के लिए जरूरी है। मकान मालिक इससे खुद को गैरकानूनी कब्जे या फालतू झगड़ों से बचा सकता है। अगर रेंट एग्रीमेंट में लिखा है कि किराया इतना होगा और इतने दिन बाद बढ़ेगा, तो किराएदार उसे मानने के लिए बाध्य होता है। वहीं किराएदार भी अपने हक सुरक्षित कर सकता है – जैसे कि बिना नोटिस के मकान खाली नहीं कराया जा सकता या अचानक किराया नहीं बढ़ाया जा सकता।
क्या 11 महीने से ज्यादा का एग्रीमेंट बन सकता है?
बिलकुल बन सकता है। अगर आप लंबे वक्त के लिए घर लेना चाहते हैं, तो आप 3 या 5 साल तक का एग्रीमेंट कर सकते हैं। बस फर्क इतना है कि इस एग्रीमेंट को रजिस्टर करवाना होता है। इसका फायदा ये है कि मकान मालिक बार-बार किराया नहीं बढ़ा सकता और किराएदार भी एक तयशुदा वक्त तक उस मकान में आराम से रह सकता है।
मकान मालिक को क्या मिलता है 5 साल के एग्रीमेंट से?
5 साल के रेंट एग्रीमेंट से मकान मालिक को भी एक मजबूती मिलती है। अगर उसे बीच में मकान खाली कराना है, तो वो सिर्फ नोटिस देकर ऐसा कर सकता है और किराएदार इसे रोक नहीं सकता। ये उसके लिए काफी सहूलियत भरा होता है, खासकर तब जब वह अपने मकान को जल्द वापस लेना चाहता हो।
किराएदारों को क्या ध्यान रखना चाहिए?
जब भी घर लें, तो रेंट एग्रीमेंट की हर शर्त ध्यान से पढ़ें। खासकर किराया कितना होगा, कितना बढ़ सकता है, कितने महीने की नोटिस अवधि है – ये सब चीजें समझ लें। मकान का फिजिकल इंस्पेक्शन जरूर करें और जो भी कमी हो, उसे लिखित में एग्रीमेंट में शामिल कराएं। और हां, हर महीने की किराया रसीद जरूर लें – इससे बाद में कोई भी झंझट हो, तो आपके पास सबूत रहेगा।
किराएदार और मकान मालिक का रिश्ता भरोसे पर चलता है, लेकिन भरोसे के साथ-साथ थोड़ी कानूनी समझ भी जरूरी है। किराया बढ़ाने के नियमों को जानकर आप किसी भी अनचाहे सरप्राइज से बच सकते हैं। और हां, अच्छा संवाद और पारदर्शिता दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद साबित होती है।
Disclaimer:
यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है और इसे किसी भी प्रकार की कानूनी सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। किरायेदारी से संबंधित नियम और कानून राज्य-दर-राज्य भिन्न हो सकते हैं। किसी भी कानूनी विवाद या निर्णय से पहले संबंधित क्षेत्र के योग्य वकील या कानूनी सलाहकार से परामर्श लेना आवश्यक है। इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न सार्वजनिक स्रोतों से संकलित की गई है, और समय के साथ इसमें बदलाव संभव है। लेखक या प्रकाशक इस लेख के आधार पर किए गए किसी भी निर्णय या कार्रवाई के परिणामों के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे।